मुनीर नियाज़ी साहब को समर्पित एक कविता :
कभी याद ही नहीं रहता
कोई जरूरी बात बतानी हो या
दिल की बात केहनी हो,
उसे दिल में बसाना हो,
या दिल में बस जाना हो,
कभी याद ही नहीं रहता।
बदले समय की सैर में दिल को लगाना हो या
बदले लोगो के दिल में बस जाना हो ,
किसी को याद करना हो या
किसी को भूल जाना हो,
कभी याद ही नहीं रहता।
वक्त से पहले और समय के बाद दिल के आरजुओ को समझना हो,
रूठे हुए को मनाना हो या
खुद रूठ जाना हो,
कभी याद ही नहीं रहता।
कभी याद ही नहीं रहता
कोई जरूरी बात बतानी हो या
दिल की बात केहनी हो,
उसे दिल में बसाना हो,
या दिल में बस जाना हो,
कभी याद ही नहीं रहता।
बदले समय की सैर में दिल को लगाना हो या
बदले लोगो के दिल में बस जाना हो ,
किसी को याद करना हो या
किसी को भूल जाना हो,
कभी याद ही नहीं रहता।
वक्त से पहले और समय के बाद दिल के आरजुओ को समझना हो,
रूठे हुए को मनाना हो या
खुद रूठ जाना हो,
कभी याद ही नहीं रहता।
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