Wednesday, 1 July 2015

यु दीवार को तकते-तकते शाम हो जाती है,
यु दीवार पे ख़्वाब को बुनते-बुनते कई शाम गुजर जाती है।
कई रातो से सोया नहीं हुँ ,
बस यु दीवार को तकते-तकते गुजार दिए है,
इन दीवारो में दफ़न अपने आरज़ूओं की अश्थी को ढूंढते-ढूंढते कई शाम गुजार दी है। 

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